उत्तराखंड हाईकोर्ट की ओर से सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की भर्ती को लेकर एक राहत को खबर सामने आ रही है कि राज्य सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को हटा दिया है। यह फैसला इन स्कूलों के प्रबंधन समितियों द्वारा दायर कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आया है, जिसमें 19 सितंबर 2023 के सरकारी आदेश को चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने अपने फैसले में सरकार के आदेश को “वैधानिक अधिकार के बिना” और “रंगदार शक्ति का प्रयोग” बताया है।
बता दें याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि शिक्षा के महानिदेशक ने 10 नवंबर 2022 को लगाए गए इसी तरह के एक प्रतिबंध को भी हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 16 अगस्त 2023 को रद्द कर दिया था. कोर्ट ने यह भी माना कि राज्य सरकार सीधे तौर पर भर्ती प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकती, क्योंकि उत्तराखंड स्कूल शिक्षा अधिनियम, 2006 के तहत यह अधिकार प्रबंधन समिति और शिक्षा विभाग के अधिकारियों को दिया गया है. कोर्ट ने कहा कि जब पहले लगे प्रतिबंध को इसी आधार पर रद्द किया गया था, तो सरकार समान आधार पर दोबारा प्रतिबंध नहीं लगा सकती.
जिस पर याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि पिछले पांच वर्षों से भर्ती पर रोक के कारण इन स्कूलों में शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों के पद खाली पड़े हैं, जिससे शिक्षा का स्तर प्रभावित हो रहा है. उन्होंने शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 का हवाला देते हुए कहा कि सरकार को प्रत्येक स्कूल में छात्र-शिक्षक अनुपात बनाए रखना सुनिश्चित करना चाहिए, लेकिन इसके बजाय वह भर्तियों में बाधाएं पैदा कर रही है.
कोर्ट ने जारी किया आदेश : कोर्ट ने आदेश में कहा कि सरकार चाहे तो भर्ती प्रक्रिया में खामियों को दूर करने के लिए आवश्यक निर्देश जारी कर सकती है, लेकिन वह पूरी प्रक्रिया पर रोक नहीं लगा सकती. कोर्ट ने चार सप्ताह के भीतर खाली पदों पर भर्ती के लिए आवेदन स्वीकार करने और कानून के अनुसार कार्रवाई करने का निर्देश दिया है.
न्यायालय ने कहा संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार है. शिक्षकों की कमी इस अधिकार का उल्लंघन करती है. कोर्ट ने माना कि सरकार का प्रतिबंध न केवल आरटीई अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ है, बल्कि बच्चों के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अधिकार में भी बाधा डालता है.













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