एसजीआरआरयू में रिसर्च कांक्लेव 2025 का आयोजन : नवाचार और सतत विकास का उत्सव

एसजीआरआरयू में रिसर्च कांक्लेव 2025 का आयोजन : नवाचार और सतत विकास का उत्सव

छात्रों ने प्रस्तुत किए विज्ञान और सामाजिक विमर्श पर शोध पत्र

स्टार्टअप, उद्यमिता, पर्यावरण विकास रहा मुख्य एजेंडा

देहरादून। श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ह्यूमैनिटीज़ एंड सोशल साइंसेज़ में ” रिसर्च कॉन्क्लेव 2025″ का सफल आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की थीम “विकसित भारत – सतत विकास हेतु अनुसंधान और नवाचार” रही। 19 से 20 सितंबर तक चलने वाले इस दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन इतिहास और गृह विज्ञान विभाग के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।

सम्मेलन का आयोजन विश्वविद्यालय के पथरी बाग स्थित सभागार में हुआ, जिसमें विश्वविद्यालय के विभिन्न स्कूलों के शोधार्थियों, शिक्षकों और प्रतिभागियों ने नवाचार एवं सतत विकास पर अपने विचार और शोध प्रस्तुत किए।

इस अवसर पर श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय के प्रेसिडेंट श्रीमहंत देवेंद्र दास जी महाराज ने स्कूल आफ ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंस द्वारा आयोजित रिसर्च कान्क्लेव के आयोजकों‌ को शुभकामनाएं प्रेषित की।

कॉन्क्लेव का उद्घाटन विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर डॉ कुमुद सकलानी, प्रथम सत्र की अध्यक्ष और मुख्य अतिथि दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर डॉ सुरेखा डंगवाल, इन्नोवेशन एंड इनक्यूबेशन सेंटर के निदेशक प्रो. (डॉ.) डी.पी. मैठाणी , डीन प्रो डॉ प्रीति तिवारी और कॉन्क्लेव के संयोजक इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सुनील किश्टवाल ने दीप प्रज्वलन करके किया।

रिसर्च कांक्लेव 2025 के उद्घाटन अवसर पर छात्रों और शोधार्थियों को संबोधित करते हुए श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. (डॉ) कुमुद सकलानी ने कहा कि आज सतत सूचना और ज्ञान का आदान-प्रदान बढ़ा है। उसके साथ ही उद्यमिता की नई संभावनाओं को तलाशना भी आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जल संरक्षण प्रबंधन को अपने जीवन शैली का हिस्सा बनाकर हम पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा उत्तराखंड में आई आपदाओं के दौरान आपदा पीड़ितों को यथासंभव सहायता पहुंचाने का भी कार्य किया गया जो कि विश्वविद्यालय की समाज के प्रति जिम्मेदारी को दर्शाता है।

मुख्य अतिथि दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर डॉ सुरेखा डंगवाल ने कहा कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने में नई शिक्षा नीति छात्रों को बेहतर अवसर प्रदान करती है। उन्होंने कहा की नई शिक्षा नीति सिर्फ शिक्षा प्राप्ति का माध्यम ही नहीं है बल्कि छात्रों को आने वाले भविष्य की प्रतिस्पर्धा के लिए भी तैयार करती है। 2047 तक देश को विश्व की अग्रणी शक्ति बनाने का साझा लक्ष्य साकार करने के लिए संस्थागत सहयोग अनिवार्य है, ताकि ज्ञान और नवाचार की शक्ति को मिलकर आगे बढ़ाया जा सके। उन्होंने सतत विकास और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण पर ध्यान देने की बात कही। उन्होंने युवाओं का आह्वान करते हुए क्षेत्रीय भाषा को पहचान देने और शैक्षिक उत्कृष्ट नवाचार से भारत को विश्व गुरु बनाने की बात कहीं।

इस अवसर पर प्रो. (डॉ.) डी.पी. मैठाणी ने शोध के माध्यम से मेक इन इंडिया के साथ ही उद्यमिता विकास और नवाचार स्टार्टअप जैसे पहलुओं को छात्रों और शोधार्थियों को बताया। साथ ही उन्होंने व्यवहारिक शोध की आवश्यकता पर जोर दिया।

कॉन्क्लेव में ग्रीन एनर्जी और सतत अवसंरचना, महिला सशक्तिकरण एवं सामाजिक समानता, जल संरक्षण एवं प्रबंधन, जलवायु और पर्यावरण संरक्षण, सांस्कृतिक विरासत एवं सतत पर्यटन तथा सतत कृषि और खाद्य सुरक्षा जैसे विषयों पर विचार-विमर्श हुआ।

कार्यक्रम के दौरान शोधार्थियों और छात्रों के द्वारा शोध पत्र प्रस्तुतीकरण, पोस्टर और प्रदर्शनी पर आधारित प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया।
रिसर्च कांक्लेव के संयोजक डॉ. सुनील किश्तवाल ने जानकारी देते हुए बताया कि विषय पर आधारित शोध पर छात्र-छात्राओं के द्वारा शोध पत्र प्रस्तुतीकरण और प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया है। विजेता छात्रों को रिसर्च कांक्लेव के समापन अवसर पर पुरस्कृत किया जाएगा।

प्रतिभागियों ने अपने शोध एवं नवाचारपूर्ण विचार प्रस्तुत किए, जिन्हें उपस्थित विशेषज्ञों और दर्शकों ने सराहा।

इस अवसर पर आयोजन समिति में प्रो. (डॉ.) प्रीति तिवारी (डीन, एसएचएसएस) सलाहकार रहीं। डॉ. सुनील किश्तवाल संयोजक, डॉ. देवश्री धर सह-संयोजक, जबकि डॉ. लता सती एवं डॉ. मोनिका शर्मा संयुक्त संयोजक रहीं। डॉ. विनोद कुमार पंत और मनोज प्रकाश जगुरी ने कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी निभाई।

इस अवसर पर स्कूल आफ ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंसेज के साथ ही विश्वविद्यालय के अन्य स्कूलों के डीन, विभागाध्यक्ष एवं सैकड़ों छात्रों ने कॉन्क्लेव में प्रतिभाग किया।

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