लद्दाख में अचानक ही विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया. पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच झड़प हो गई. प्रदर्शनकारियों ने स्थानीय भाजपा ऑफिस में आग लगा दी. लेह में हो रहे आंदोलन का नेतृत्व लेह एपेक्स बॉडी (स्वतंत्र संगठन) के पास है. वे लद्दाख को राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहे हैं. इसके अलावा भी उनकी कई मांगें हैं. लेह, लद्दाख की राजधानी है. यह केंद्र शासित प्रदेश है. जम्मू कश्मीर के विभाजन (2019) के बाद इसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था.
लेह एपेक्स बॉडी के नेता अनशन पर बैठे हुए हैं. उन्होंने धमकी दी है कि जब तक राज्य बहाली की मांगें नहीं मानी जाती हैं, तब तक उन लोगों की भूख हड़ताल जारी रहेगी. 10 सितंबर से वे भूख हड़ताल पर बैठे हैं. मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक भी इसी संगठन के तहत अनशन पर बैठे हैं. अब जबकि आंदोलनकारियों ने हिंसा का सहारा लिया है, तो वांगचुक ने शांति बरतने की अपील की है. इस हिंसा में चार की मौत हो चुकी है. पुलिस के कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया है. वांगचुक ने 15 दिनों से चल रहे अपने उपवास को तोड़ने का भी ऐलान कर दिया.
लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस पिछले चार सालों से केंद्रीय गृह मंत्रालय से बात कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई भी समाधान नहीं निकला है. लेह अपेक्स बॉडी ने केंद्र सरकार के साथ बातचीत की मांग की है. गृह मंत्रालय ने छह अक्टूबर को बातचीत की तारीख भी रखी है. इससे पहले मई महीने में भी होम मिनिस्ट्री के साथ बैठक हुई थी.
लेह एपेक्स बॉडी की मांग है कि जब भी सरकार बैठक की तारीख तय करती है, तो पहले उससे संपर्क साधा जाए, उसके बाद तिथि का निर्धारण हो. उनका आरोप है कि सरकार अपनी ओर से बातचीत की तारीख का ऐलान कर देती है और उन्हें इसके बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है.
लेह एपेक्स बॉडी के को-चेयरमैन छेरिंग दोरजे ने कहा, “हमारा विरोध शांतिपूर्ण है, लेकिन लोगों का धैर्य टूट रहा है. स्थिति हमारे हाथ से निकल सकती है, बातचीत पहले ही टल चुकी है.”
छठी अनुसूची के सुरक्षा उपायों पर चर्चा शामिल होनी चाहिए, जो 2020 में पिछले चुनाव के दौरान किया गया वादा था. लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करना भाजपा के घोषणापत्र में नंबर एक प्रतिबद्धता थी. उस वादे ने उनकी चुनावी जीत में अहम भूमिका निभाई. हिल काउंसिल के चुनाव फिर से नजदीक आ रहे हैं, तो इस पर विचार करना और भी जरूरी हो जाता है.”
उन्होंने आगे कहा, “हमारे आंदोलनकारी कुछ भी वैसा नहीं करना चाहते हैं, जिससे देश को शर्मसार होना पड़े, इसलिए हम शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन को जारी रखना चाहते हैं. मेरी तो यह मांग पिछले पांच सालों से है. आप समझिए कि देश का संविधान भी दो सालों में तैयार हो गया था. फिर इसमें देरी क्यों हो रही है.”
वांगचुक ने कहा कि जम्मू कश्मीर को अपना विधानसभा मिल चुका है. उसे अपनी सरकार भी मिल गई. फिर लद्दाख की उपेक्षा क्यों की जा रही है ? वांगचुक ने कहा कि लद्दाख को अभी भी केंद्र सरकार के अधिकारी चला रहे हैं.
वांगचुक ने पहले भी कहा था कि हमारी ये मांगें संविधान के दायरे में हैं. उन्होंने दावा किया है कि खुद भाजपा ने अपने मेनिफेस्टो में आर्टिकल 244 के तहत छठी अनुसूची में लद्दाख को शामिल करने का वादा किया था. वांगचुक ने साल 2024 में लेह से दिल्ली की यात्रा की थी. वह पैदल ही आए थे. उनके अनुसार गृह मंत्रालय सिर्फ दो मांगों को लेकर बातचीत करने को तैयार हुई. पहला – अलग से सर्विस कमीशन का गठन और दूसरा दो संसदीय सीटों को लेकर बातचीत.
जो लोग लेह एपेक्स बॉडी की बातों से सहमत नहीं हैं, उनका कहना है कि लद्दाख, जम्मू कश्मीर का हिस्सा हुआ करता था. और तब उनकी मुख्य मांग लद्दाख को जम्मू कश्मीर से अलग करने की थी. और उसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा भी मिल गया. इसलिए उनकी यह मांग तो मानी जा चुकी है, लिहाजा इस पर चर्चा नहीं की जा सकती है.
जहां तक छठी अनुसूची में शामिल करने की बात है, तो यह एक पेंचीदा विषय है. अनुच्छेद 244 के तहत परिभाषित छठी अनुसूची, असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा जैसे जनजातीय क्षेत्रों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करती है.
अब समय आ गया है कि भारत सरकार 2019 के बाद से वास्तव में क्या बदला है, इसका ईमानदारी से और गहन मूल्यांकन करे. यह वीडियो कश्मीर घाटी का नहीं है, जिसे अशांति का केंद्र माना जाता है, बल्कि लद्दाख के हृदयस्थल से है, जहां गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने पुलिस वाहनों और भाजपा कार्यालय को आग लगा दी है. लेह, जो लंबे समय से अपने शांतिपूर्ण और संयमित विरोध प्रदर्शनों के लिए जाना जाता है, अब हिंसक प्रदर्शनों की ओर एक चिंताजनक बदलाव देख रहा है. ऐसा लगता है कि लोगों ने धैर्य खो दिया है, वे विश्वासघात, असुरक्षित और अधूरे वादों से निराश महसूस कर रहे हैं. यह जरूरी है कि सरकार दिन-प्रतिदिन के संकट प्रबंधन से आगे बढ़े और इस असंतोष के मूल कारणों का तत्काल और पारदर्शी तरीके से समाधान करे.”- महबूबा मुफ्ती, जम्मू कश्मीर की पूर्व सीएम

















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