भारतीय वायु सेना के नियमों के तहत सौतेली मां को पारिवारिक पेंशन का नही मिल सकता लाभ

केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि भारतीय वायु सेना के नियमों के तहत सौतेली मां को पारिवारिक पेंशन देने पर विचार करना संभव नहीं है, क्योंकि सौतेली मां कानूनी और रिश्ते के तौर पर दोनों ही नजरिये से प्राकृतिक मां से अलग होती है.

जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्ज्वल भुइयां और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ मामले में सुनवाई कर रही थी. केंद्र सरकार ने जोर देकर कहा कि यह कानून का एक स्थापित सिद्धांत है कि हालांकि पेंशन कोई इनाम नहीं है और इसे अधिकार के रूप में दावा किया जा सकता है, लेकिन यह अधिकार न तो पूर्ण है और न ही बिना शर्त.

 

केंद्र ने कहा कि पेंशन लाभ पाने के लिए, वर्तमान वैधानिक प्रावधानों या विनियमों के तहत स्पष्ट पात्रता स्थापित करना जरूरी है. केंद्र ने कहा कि सौतेली मां को भी इसमें शामिल करना, जो परिभाषा के अनुसार जैविक माता-पिता में नहीं आती है, विधायिका द्वारा निर्धारित दायरे से बाहर अनुचित न्यायिक विस्तार होगा.

अपनी दलील के समर्थन में, केंद्र सरकार ने भरण-पोषण और अन्य कल्याणकारी लाभों से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का हवाला दिया. सरकार ने कहा कि इन फैसलों में कहा गया है कि ‘मां’ शब्द केवल प्राकृतिक या जैविक मां के लिए है, सौतेली मां के लिए नहीं.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने दलील दी कि जुलाई 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को विचार के लिए इस प्रकार लिया था: “क्या एक सौतेली मां सेना के नियमों के तहत विशेष और साधारण पारिवारिक पेंशन की हकदार है.”

 

केंद्र ने कहा कि अपीलकर्ता, जो मृतक वायुसैनिक की सौतेली मां है, का दावा भारतीय वायु सेना के पेंशन विनियमन, 1961 और इसके विनियमन 192 के अनुसार शासित होता है. सरकार ने कहा कि वह पारिवारिक पेंशन पाने के पात्र आश्रितों की श्रेणी में नहीं आती हैं

.विनियमन 192 का हवाला देते हुए केंद्र ने कहा कि ‘मां’ शब्द की व्याख्या परिवार के सदस्यों की परिभाषित और सीमित श्रेणियों के अनुरूप की जानी चाहिए.

 

पीठ ने इस मामले में अगली सुनवाई 20 नवंबर को निर्धारित की है.

 

सुप्रीम कोर्ट सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (Armed Forces Tribunal- AFT) के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें जयाश्री वाई जोगी (Jayashree Y Jogi) नाम की महिला को विशेष पारिवारिक पेंशन देने से इनकार किया गया था. याचिकाकर्ता ने मृतक, जो एक वायुसैनिक था, का पालन-पोषण छह साल की उम्र से किया था, जब उसकी जैविक मां का निधन हो गया था और पिता ने दूसरी शादी कर ली थी. वायु सेना ने दावा किया कि वायुसैनिक की मृत्यु आत्महत्या से हुई थी.याचिकाकर्ता ने एएफटी के 10 दिसंबर, 2021 के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया और अधिवक्ता सिद्धार्थ संगल के माध्यम से याचिका दायर की. याचिका में दावा किया गया कि उनका मृत बेटा कार्यरत वायुसैनिक था और 28 अप्रैल, 2008 को उसकी रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी, जब वह वायुसेना मेस में भोजन कर रहा था.

 

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