पंचायत चुनाव : पिथौरागढ़ में इस क्षेत्र में महिला सीट, फिर भी नहीं हुआ एक भी नामांकन, जानिए क्या वजह

पिथौरागढ़ : खोतार कन्याल गांव, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के डीडीहाट क्षेत्र में बसा एक छोटा सा गांव है, जहां वनराजि जनजाति के कुछ परिवार रहते हैं। इस गांव की कहानी हाल ही में चर्चा में आई है, क्योंकि यहां पंचायत चुनाव में प्रधान पद को जनजातीय महिला के लिए आरक्षित किया गया था, लेकिन गांव में एक भी ऐसी महिला नहीं मिली जो आठवीं कक्षा पास हो। इस वजह से इस सीट के लिए कोई नामांकन नहीं हो सका।

खोतार कन्याल गांव में वनराजि जनजाति, जो उत्तराखंड की एक अति संवेदनशील जनजाति है, के लोग मुख्य रूप से रहते हैं। यह जनजाति अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक विशिष्टता के लिए जानी जाती है, लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में यह समुदाय काफी पीछे है। गांव में महिलाओं की शिक्षा का स्तर इतना कम है कि कोई भी महिला आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी नहीं कर सकी है। यह स्थिति उत्तराखंड जैसे प्रगतिशील राज्य के लिए एक विडंबना है, जो 25 साल पहले अस्तित्व में आया था।

पंचायत चुनाव में प्रधान पद के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता आठवीं कक्षा निर्धारित है। जब इस गांव में यह सीट जनजातीय महिला के लिए आरक्षित की गई, तो कोई भी महिला इस योग्यता को पूरा नहीं कर सकी। न केवल खोतार कन्याल, बल्कि आसपास के खेतार भंडारी गांव में भी ऐसी कोई महिला नहीं मिली। इस स्थिति ने गांव में शिक्षा, खासकर महिला शिक्षा, की कमी को उजागर किया।

 आरक्षित सीट के लिए कोई उम्मीदवार न मिलने से गांव में नेतृत्व का अभाव रहा। यह स्थानीय शासन और विकास कार्यों पर भी असर डाल सकता है।

महिला सशक्तिकरण पर सवाल : यह स्थिति महिला सशक्तिकरण पर सवाल उठाती है।  जब पूरे प्रदेश में महिला सशक्तिकरण का नारा जोरों शोरों से दिया जाता रहा ओर तब धरातल पर इसी स्थिति का उजागर होना इस विषय को ओर गंभीरता से सोचने पर मजबूर करता है। पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें होती हैं, तो इसका उद्देश्य महिलाओं को नेतृत्व में लाना है, लेकिन शिक्षा की कमी इस लक्ष्य को प्राप्त करने में बाधा बन रही है। इस घटना ने उत्तराखंड के ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा की स्थिति पर ध्यान खींचा है। यह एक चेतावनी है कि शिक्षा के क्षेत्र में अभी बहुत काम करने की जरूरत है।

खोतार कन्याल गांव की यह कहानी भारत के उन तमाम क्षेत्रों की हकीकत को दर्शाती है, जहां शिक्षा और विकास अभी भी एक चुनौती है। यह न केवल स्थानीय प्रशासन के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक सबक है कि शिक्षा के बिना सशक्तिकरण और प्रगति संभव नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!