श्रीनगर: रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता और जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने बुधवार को लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने और क्षेत्र को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर 35 दिनों की भूख हड़ताल शुरू की है. सोनम वांगचुक लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) के साथ मिलकर अनशन शुरू किया है.
लेह में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, वांगचुक ने कहा कि यह भूख हड़ताल 2 अक्टूबर, गांधी जयंती तक चलेगी. जिसे उन्होंने अपने आंदोलन के लिए एक ऐतिहासिक दिन बताया. उन्होंने कहा कि यह फैसला केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा पिछले दो महीनों में लद्दाखी प्रतिनिधियों के साथ कोई बैठक आयोजित न करने के बाद लिया गया है.
सोनम वांगचुक ने कहा कि, केंद्र सरकार के साथ बातचीत लगभग दो महीने पहले बंद हो गई थी. जब मुख्य मांगों पर चर्चा शुरू होने वाली थी, तब सरकार ने दूसरी बैठक नहीं बुलाई. वांगचुक ने कहा कि नई दिल्ली की चुप्पी ने उन्हें लंबे अनशन के जरिए अपना विरोध तेज करने पर मजबूर कर दिया. उन्होंने आगे कहा कि, लद्दाख को राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के तहत संरक्षण दिलाने के लिए अपने आंदोलन को तेज करने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा है.
कार्यकर्ता ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को लेह में पिछले पर्वतीय परिषद चुनावों के दौरान हिमालयी क्षेत्र के लिए छठी अनुसूची के सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करने के उसके वादे की भी याद दिलाई. परिषद चुनावों के अगले दौर के नज़दीक आते ही, वांगचुक ने सरकार से उस प्रतिबद्धता को पूरा करने का आग्रह किया.
उन्होंने कहा कि, आगामी चुनावों से पहले यह वादा पूरा किया जाना चाहिए. अनशन की शुरुआत के मौके पर, एलएबी ने अपनी मांगों की शांतिपूर्ण और संवैधानिक प्रकृति को उजागर करने के लिए एक सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया. वांगचुक ने ज़ोर देकर कहा कि, उनका विरोध अहिंसक है और उनकी मांगें भारतीय संविधान के दायरे में है.
लगभग दो महीने पहले, वांगचुक ने घोषणा की थी कि अगर केंद्र सरकार लद्दाख के राजनीतिक भविष्य पर एलएबी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के साथ बातचीत नहीं करती है, तो वे 15 जुलाई से भूख हड़ताल पर बैठेंगे. गृह मंत्रालय ने 28 जुलाई को बैठक का आश्वासन दिया था, जिसे बाद में 20 जुलाई के लिए बढ़ा दिया गया, लेकिन एलएबी के प्रतिनिधियों का दावा है कि तब से कोई प्रगति नहीं हुई है.
एलएबी और केडीए दोनों संयुक्त रूप से राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा की मांग को लेकर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं, जिससे लद्दाख को उसके आदिवासी समुदायों, भूमि और संसाधनों के लिए विशेष संवैधानिक सुरक्षा मिलेगी
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