पौड़ी: कोट विकासखंड के सितोनस्यूं पट्टी में स्थित फलस्वाड़ी गांव धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र स्थल माना जाता है. मान्यता है कि यहीं पर माता सीता ने धरती में समाकर भू समाधि ली थी. कहा जाता है कि जिस स्थान पर माता सीता ने भू समाधि ली. वहां एक ओर महर्षि वाल्मीकि का मंदिर और दूसरी ओर लक्ष्मण मंदिर स्थित है. इस कारण यह पूरा क्षेत्र धार्मिक आस्था और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है.
हर साल इगास पर्व के दूसरे दिन यहां पारंपरिक रूप से मानसार मेले का आयोजन किया जाता है. रविवार को आयोजित इस मेले में आसपास के गांवों से श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी. परंपरा के अनुसार देवल गांव स्थित लक्ष्मण मंदिर से श्रद्धालु ढोल-दमाऊं और धार्मिक ध्वज-निशानों के साथ फलस्वाड़ी गांव की ओर प्रस्थान करते हैं. दूसरी ओर कोटसाड़ा गांव के ग्रामीण रस्सी, दूण-कंडी और पारंपरिक सामग्रियों के साथ पहुंचते हैं.
फलस्वाड़ी पहुंचने के बाद निशान लगी लकड़ियों से खेत की प्रतीकात्मक खुदाई की जाती है. मान्यता है कि इस खुदाई के दौरान सीता माता के शिलारूपी दर्शन होते हैं. लक्ष्मण मंदिर समिति के अध्यक्ष प्रदीप भट्ट ने बताया कि लोकविश्वासों के अनुसार, जब भगवान श्रीराम ने माता सीता को वनवास भेजा था, तब लक्ष्मण जी ने उन्हें इसी फलस्वाड़ी गांव में छोड़ा था. बाद में माता सीता ने यहीं धरती में समाकर भू-समाधि ली थी.
भूमि के अंदर समा गया प्राचीन मंदिर: कई श्रद्धालुओं का ये भी मानना है कि इसी स्थल के नीचे आज भी सीता माता का प्राचीन मंदिर स्थित है, जो समय के साथ भूमि के अंदर समा गया. इस पवित्र स्थल पर हर साल लगने वाला मानसार मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि क्षेत्र की लोक संस्कृति और परंपराओं को भी जीवित रखे हुए हैं
.लक्ष्मण मंदिर समिति के अध्यक्ष प्रदीप भट्ट ने बताया कि लोकविश्वासों के अनुसार, जब भगवान श्रीराम ने माता सीता को वनवास भेजा था, तब लक्ष्मण जी ने उन्हें इसी फलस्वाड़ी गांव में छोड़ा था. बाद में माता सीता ने यहीं धरती में समाकर भू-समाधि ली थी.
भूमि के अंदर समा गया प्राचीन मंदिर: कई श्रद्धालुओं का ये भी मानना है कि इसी स्थल के नीचे आज भी सीता माता का प्राचीन मंदिर स्थित है, जो समय के साथ भूमि के अंदर समा गया. इस पवित्र स्थल पर हर साल लगने वाला मानसार मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि क्षेत्र की लोक संस्कृति और परंपराओं को भी जीवित रखे हुए हैं
.पंडित अनसूया प्रसाद सुंदरियाल ने कहा कि सितोनस्यूं क्षेत्र धार्मिक आस्था और पुरातन मान्यताओं से परिपूर्ण एक पवित्र धाम है. जिस प्रकार अयोध्या में भगवान श्रीराम की आराधना पूरे भक्ति भाव से की जाती है, उसी तर्ज पर इस पवित्र स्थल पर माता सीता की पूजा-अर्चना की जाती है.
माता सीता ने ली थी भू समाधि: उन्होंने बताया कि यह वही भूमि है. जहां माता सीता ने भू समाधि ली थी, इसलिए इसे सीता की तपोभूमि और उत्तराखंड की अयोध्या कहा जाता है. उन्होंने कहा कि इस पावन स्थल की महत्ता और इसकी धार्मिक मान्यताओं को जन-जन तक पहुंचाना आज समय की आवश्यकता है. ताकि, आने वाली पीढ़ियां अपने इतिहास और संस्कृति से जुड़ सकें
.पंडित सुंदरियाल ने आगे बताया कि रविवार को आयोजित मानसार मेला आस्था, परंपरा और लोकसंस्कृति का अद्भुत संगम बना. मेले की शुरुआत सुबह देवल गांव स्थित लक्ष्मण जी के मंदिर से विधिवत पूजा-अर्चना और ध्वज-निशान के साथ हुई. पारंपरिक ढोल-दमाऊं की थाप पर श्रद्धालु और ग्रामीण झूमते हुए पौराणिक रीति-रिवाजों के साथ शोभायात्रा के रूप में फलस्वाड़ी गांव पहुंचे.
फलस्वाड़ी गांव में पवित्र लकड़ियों से खेत में की प्रतीकात्मक खुदाई: इसी के साथ कोटसाड़ा गांव से भी ग्रामीण रस्सी, दूण-कंडी और पारंपरिक सामग्री लेकर श्रद्धा भाव से पहुंचे. फलस्वाड़ी गांव पहुंचकर श्रद्धालुओं ने निशान लगी पवित्र लकड़ियों से खेत की प्रतीकात्मक खुदाई की, जो माता सीता के भू-समाधि स्थल की याद में की जाती है
.श्रद्धालुओं ने सीता माता के शिलारूप किए दर्शन: खुदाई के दौरान जब श्रद्धालुओं ने सीता माता के शिलारूप दर्शन किए तो वहां मौजूद जनसमूह भाव-विभोर हो उठा. पूरा वातावरण ‘जय सीता माता’ के जयघोषों से गूंज उठा. दूर-दराज के गांवों और अन्य जिलों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस दिव्य आयोजन में शामिल होने पहुंचे.
ग्रामीणों ने पारंपरिक व्यंजन बनाए, लोकगीत गाए और ढोल-दमाऊं की ताल पर झूमकर अपनी श्रद्धा व्यक्त की. पूरे क्षेत्र में एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्सव जैसा माहौल रहा. पंडित सुंदरियाल ने कहा कि यदि इस क्षेत्र के पौराणिक महत्व और धार्मिक इतिहास का प्रचार-प्रसार किया जाए तो निश्चित ही यह स्थल भी अयोध्या की भांति श्रद्धालुओं का केंद्र बन सकता है.आने वाले समय में यहां भी बड़ी संख्या में भक्त और पर्यटक पहुंचेंगे, जिससे न केवल क्षेत्र की पहचान बढ़ेगी. बल्कि, स्थानीय संस्कृति और अर्थव्यवस्था को भी नया आयाम मिलेगा. मां सीता की यह तपोभूमि न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, हमारी जड़ों और हमारे गौरव का प्रतीक भी है













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