देहरादून: धामी सरकार अनाथ बच्चों और बेसहारा महिलाओं को तमाम सुविधाएं उपलब्ध करा रही है, जिसमें आवश्यक केंद्र भी शामिल है. लेकिन अब राज्य सरकार अनाथ बच्चों और बेसहारा महिलाओं को पारिवारिक माहौल देने की तैयारी में है. इस योजना को लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य होगा. महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग ने इस योजना पर अपना काम भी शुरू हो दिया है.
इस योजना के तहत राज्य सरकार की कोशिश है कि अनाथ बच्चों और बेसहारा में महिलाओं को एक ही छत के नीचे रखकर उन्हें पारिवारिक माहौल दिया जा सके, ताकि बच्चों और किशोरियों का जीवन उज्जवल हो. आखिर क्या है विभाग की यह योजना और कितनी कारगर साबित हो सकती है, इसके बारे में आपको विस्तार से बताते है.
उत्तराखंड सरकार आलंबन गांव योजना के तहत अनाथ महिला, बच्चों और बालिकाओं को सहारा देने का निर्णय लिया है. इस योजना के साथ ही उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जिस राज्य ने आलंबन गांव बनाने का निर्णय लिया है. पिछले महीने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई सचिव समिति की बैठक में इस योजना को मंजूरी मिल चुकी है, जिसके बाद विभागीय सचिव ने देहरादून जिलाधिकारी से इस बाबत अनुरोध किया गया है कि विकासनगर में भूमि का चयन कर जल्द से जल्द विभाग को उपलब्ध कराए ताकि आगे की कार्रवाही की जा सके.
वैसे प्रदेश में पहले से ही नारी निकेतन, बाल सुधार और महिला पुनर्वास कल्याण केंद्र समिति संचालन किया जा रहे हैं. ऐसे में जो लोग इसमें नहीं रहना चाहेंगे, उन लोगों को आलंबन गांव में रखा जाएगा. आलंबन गांव योजना के तहत न सिर्फ बच्चों किशोरियों और महिलाओं को आश्रय दिया जाएगा, बल्कि उनको आत्मनिर्भर भी बनाया जाएगा. इस गांव में रहने वाली बालिकाओं और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाए जाने को लेकर तमाम व्यावसायिक गतिविधियां भी संचारित की जाएगी. साथ ही उनके बनाए गए उत्पादों की बिक्री के लिए आउटलेट सेंटर भी खोले जाएंगे.
आलंबन गांव में रहने वाले आश्रितों को मुख्य रूप से खेती, बागवानी, मछली पालन, डेयरी और मुर्गी पालन का प्रशिक्षण दिया जाएगा. ताकि ये लोग स्वरोजगार से जुड़कर आत्मनिर्भर बन सके. इस बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग के सचिव चंद्रेश यादव ने कहा कि प्रदेश में जो अनाथ-निआश्रित महिलाएं, 18 साल से कम उम्र के बालक और किशोरियां है, उनके लिए आलंबन गांव की योजना शुरू करने की रूप रेखा को तैयार किया गया है.
किशोर न्याय अधिनियम की मंशा है कि बच्चों को संस्था में रखना लास्ट विकल्प है. इससे पहले बच्चों को सामुदायिक माहौल दिया जाना चाहिए, जिसको देखते हुए महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग ने कम्युनिटी बेस्ड योजना तैयार की है. इस तरह की योजना शुरू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य है.
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