कल ही कश्मीर से लौटे तो कुछ ने करा ली थी बुकिंग, हमले के बाद सब बदल गया

जम्मू और कश्मीर के पहलगाम के बैसारन घाटी में आतंकी हमले में 26 पर्यटकों की मौत और 20 से अधिक के घायल होने से पूरा देश सन्न है। लोग प्रत्यक्ष और सोशल मीडिया पर आतंकियों की बुजदिली भरी करतूत पर आक्रोशित हैं। हाल में पहलगाम घूम कर आए और घूमने का प्लान बना रहे लोग कश्मीर घाटी के अचानक बदले चेहरे से भय में हैं। उत्तराखंड के टिहरी निवासी केशर सिंह बिष्ट ने सोशल मीडिया पर कश्मीर को लेकर अपना अनुभव साझा किया है। वह कहते हैं कि दिसंबर-जनवरी माह में ही वह कश्मीर, गुलमर्ग और पहलगाम होकर आए। उनके ऑफिस की एक युवती कल ही अपने परिवार के साथ कश्मीर से वापस लौटी। अब उनका पूरा परिवार अचानक हुई इस कायराना हरकत से सदमे है।केशर सिंह बिष्ट के अनुसार जब वह कश्मीर घाटी से लौटे थे तो वहां के खांतिपूर्ण माहौल और स्थानीय लोगों की प्रशंसा के लंबे पुल बांधे थे। उन्हीं के ऑफिस के तमाम लोग इसी साल कश्मीर जाने का साहस जुटा चुके थे। कई लोग बुकिंग करा चुके थे और वह खुद भी जून माह में दोबारा कश्मीर जाने की सोच रहे थे। हालांकि, इस घटना ने सबकुछ बदलकर रख दिया। अब शायद ही फिलहाल कोई कश्मीर का रुख करना चाहेगा।

 

केशर सिंह बिष्ट मौजूदा घटना और अपने भ्रमण के दौरान की शांति पर मंथन भी कर रहे हैं। उन्हें याद आता है कि कैसे हर पुल, हर हाइवे, पहाड़ पर जवान तैनात थे। वह याद करते हैं कि कैसे बाग-बागीचों, चौराहों पर ऑटोमैटिक गन लिए जवान शांति कायम करने में जुटे थे। छोटी-छोटी जगहों पर भी एलएमजी लगी हुई थी। जाहिर है यह शांति बंदूक के साए में थी, नैसर्गिक और सहज नहीं। आतंक का खौफ चुपचाप बंदूक के साए तले सिर उठा रहा था और इसी तरह की कायराना हरकत की फिराक में था।

आखिर कश्मीर कब तक आतंकियों की दहशत में दहलता रहेगा। कब तक लोग आतंक के निशाने पर खौफ के साए में रहेंगे। पहलगाम की बैसारन घाटी की यह घटना नई नहीं है। बीते 15 सालों में ही इंसानियत ऐसे 11 आतंकी हमले झेल चुकी है। जिसमें अब तक 227 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। कश्मीर की मौजूदा घटना इंसानियत को और भी शर्मसार करने वाली है। आतंकियों ने जिस तरह धर्म पूछा और फिर चुन-चुन कर हिंदू पुरुषों को निशाना बनाया, वह बताता है कि आतंकी किस तरह धर्म के नाम पर कत्लेआम पर उतारू हैं।

 

05 अगस्त 2019 को जब संविधान में संशोधन कर जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35ए हटाकर विशेष राज्य का दर्जा समाप्त किया गया तो लगा कि कश्मीर के दरवाजे अब देश-दुनिया के लिए खुल गए हैं। धरातल पर बदलाव की बयार भी नजर आने लगी थी। किसे पता था कि इस लंबी शांति के पीछे मजहबी नफरत निरंतर पनप रही है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार कश्मीर में बहाल की जा रही शांति से आईएसआई खुश नहीं था। पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को कवर करने के लिए उसने टीआरएफ (द रेसिस्टेंस फ्रंट) का गठन किया।

इस आतंकी संगठन को पाकिस्तानी सेना फंडिंग करती है। टीआरएफ अधिकतर लश्कर के फंडिंग चैनलों का प्रयोग करता है। गृह मंत्रालय ने ही राजयसभा में बताया था कि टीआरएफ लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा संगठन है। वर्ष 2019 में कश्मीर में बदलाव की शुरुआत के साथ ही टीआरएफ अस्तित्व में आ गया था। उसके बाद से वह कश्मीर में आतंकी गतिविधियों में सक्रिय है। इस संगठन ने हिट स्कवॉड और फाल्कन स्कवॉड तैयार किया है, जो टारगेट किलिंग को अंजाम देने के लिए है। दस्ते में शामिल आतंकी जंगल और ऊंचे इलाकों में छिपने में अभस्थ हैं।

 

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