नई दिल्ली: लोकसभा में हंगामे के बीच बुधवार को संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया. इस बिल में कहा गया है कि अगर कोई मंत्री लगातार 30 दिन तक गंभीर अपराध के आरोप में जेल में है, तो उसे पद से हटना होगा. यहां गंभीर अपराध का मतलब है कि जिस जुर्म में पांच साल या उससे ज्यादा की सजा का प्रावधान हो.
बिल में क्या लिखा गया है ?
विधेयक में लिखा है, “कोई भी मंत्री, जो इस पद पर रहते हुए लगातार तीस दिनों की किसी अवधि के दौरान, किसी भी समय प्रवृत्त कानून के तहत कोई अपराध करने के आरोप पर गिरफ्तार किया जाता है और हिरासत में रखा जाता है, जो पांच साल या उससे अधिक कारावास से दंडनीय है, उसे ऐसी हिरासत में लिए जाने के 31वें दिन तक मुख्यमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा उसके पद से हटा दिया जाएगा.”
विधेयक में कहा गया है, “अगर ऐसे मंत्री को हटाने के लिए मुख्यमंत्री की सलाह 31वें दिन तक राष्ट्रपति को नहीं दी जाती है, तो वह उसके बाद आने वाले दिन से मंत्री नहीं रहेगा…” इस बिल के तहत संविधान के अनुच्छेद 75 में संशोधन किया जाएगा, जो प्रधानमंत्री सहित मंत्रिपरिषद की नियुक्ति से जुड़ा है.
क्या पीएम और सीएम भी इस बिल के दायरे में आते हैं ?
क्या प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री भी इस कानून के दायरे में आएंगे, तो इसका जवाब है – हां.
जब मंत्री जेल से रिहा होगा तो क्या होगा?
विधेयक के प्रावधानों के तहत सैद्धांतिक रूप से यह संभव है कि संबंधित मंत्री जेल से बाहर आने के बाद फिर नियुक्त हो जाएं. इसके सब-सेक्शन (1) के तहत ऐसे मुख्यमंत्री या मंत्री को हिरासत से रिहा होने पर राष्ट्रपति द्वारा मुख्यमंत्री या मंत्री को नियुक्त किए जाने से नहीं रोका जाएगा.
बिल पेश होने के बाद विचार विमर्श के लिए जेपीसी के पास
संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025, लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति द्वारा चुने जाने वाले 31 सदस्यों वाली एक संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया है. अमित शाह ने अनुरोध किया कि समिति संसद के अगले सत्र के पहले दिन से पहले अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करे.
क्या होती है संयुक्त समिति ?
संसद द्वारा किसी विशेष उद्देश्य जैसे किसी विषय या विधेयक की विस्तृत जांच के लिए, संयुक्त संसदीय समिति (JPC) का गठन किया जाता है. इसमें दोनों सदनों के सदस्य होते हैं और इसका कार्यकाल समाप्त होने या इसका कार्य पूरा होने के बाद इसे भंग कर दिया जाता है. जेपीसी का कार्य उसे गठित करने वाले प्रस्ताव पर निर्भर करता है. हालांकि इसकी सिफारिशें प्रेरक होती हैं, लेकिन वे सरकार पर बाध्यकारी नहीं होतीं.
बिल पेश करने के समय सदन में क्या हुआ
इस विधेयक का विपक्ष ने जोरदार विरोध किया. कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने 2010 में सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले में गृह मंत्री की गिरफ्तारी का मुद्दा उठाया. हालांकि, शाह ने जवाब दिया कि गिरफ़्तारी से पहले ही उन्होंने गुजरात के गृह मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.
उन्होंने कहा, “मैं कांग्रेस को याद दिलाना चाहता हूं कि मैंने अरेस्ट होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था और बेल पर बाहर आने के बाद भी, जब तक मैं अदालत से पूरी तरह निर्दोष साबित नहीं हुआ, तब तक मैंने कोई संवैधानिक पद नहीं लिया था.”
विपक्ष इस विधेयक का विरोध क्यों कर रहा है?
विधेयक से गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे, गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए किसी मंत्री द्वारा संवैधानिक नैतिकता और सुशासन के सिद्धांतों को विफल या बाधित किया जा सकता है और इससे लोगों में उसके विश्वास को कम किया जा सकता है.
हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि बिल के प्रावधानों का इस्तेमाल विपक्षी नेताओं को चुन-चुनकर निशाना बनाने और राज्यों में उनकी सरकारों को अस्थिर करने के लिए किया जा सकता है. कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, AAP और अन्य दल लंबे समय से दावा करते रहे हैं कि CBI और ED जैसी केंद्रीय एजेंसियां – जो BJP के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के अधीन आती हैं – उनके नेताओं को गलत तरीके से निशाना बनाती हैं.
विधायकों को अयोग्य ठहराने का प्रावधान
इसके अलावा मंत्रियों को केवल गिरफ्तारी के आधार पर पद से हटाने का प्रावधान है, न कि दोषसिद्धि के बाद. विभिन्न अपराधों में दोषी ठहराए गए विधायकों को अयोग्य ठहराने के प्रावधान पहले से मौजूद हैं. भारतीय कानून के मुताबिक किसी आरोपी को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि उसका दोष सिद्ध न हो जाए.
ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि वह इस बिला का विरोध कर रहे हैं क्योंकि यह सेपरेशन ऑफ पावर के सिद्धांत के विरुद्ध है, जो कार्यकारी एजेंसियों को जज और एग्जीक्यूशनर बनाता है.
वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि यह विधेयक ‘सुपर-इमरजेंसी’ला सकता है. बनर्जी ने एक्स पर पोस्ट किया, “मैं 130वें संविधान संशोधन विधेयक की निंदा करती हूं. यह एक ऐसा कदम है, जो सुपर-इमरजेंसी से कहीं बढ़कर है, यह भारत के लोकतांत्रिक युग को हमेशा के लिए समाप्त कर देगा.
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