पिता ने निधन के बाद बच्चे संपत्ति के उत्तराधिकारी तो बने लेकिन वे बैंक के लोन की मासिक किस्तें समय पर नहीं जमा करवा सके। अब बुजुर्ग के बच्चों को 15 सितंबर तक उस संपत्ति से अपना सारा सामान हटाने का निर्देश दिए गए हैं।अदालत ने कहा कि बैंक कब्जा लेने के लिए कैंट पुलिस स्टेशन से सहायता भी ले सकता है
एक शख्स ने अपना आशियाना बनाने के लिए एक बड़ा प्लॉट खरीदा लेकिन समय गुजरने के साथ उनकी उम्र 60 के पार निकल गई। इस पड़ाव पर दैनिक खर्चे निकालने भी मुश्किल हो गए। ऐसे में उन्होंने उस संपत्ति को गिरवी रखकर 20.81 लाख रुपयों का रिवर्स मॉर्टगेज लोन ले लिया और बेफिक्र हो गए। क्योंकि इस लोन की किस्तें जीते-जी नहीं चुकानी पड़तीं। उनकी मृत्यु के बाद लोन चुकाने की जिम्मेदारी बच्चों की थी।
, बैंक को उस संपत्ति पर कब्जा लेने की अनुमति दे दी। यह फैसला मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट रिंकी साहनी ने सरफेसी एक्ट के तहत सुनाया। पेश मामले में बुजुर्ग ने अपनी 214 वर्ग मीटर जमीन एक निजी बैंक के पास गिरवी रखी थी। निधन के बाद उत्तराधिकारी संपत्ति के लाभार्थी तो बने लेकिन वे बैंक के लोन की मासिक किस्तें समय पर नहीं जमा करवा सके।
लोन की राशि ब्याज मिलाकर एक करोड़ रुपये से अधिक हो गई थी। उन्होंने बैंक के नोटिस नजरंदाज किए। ऐसे में बैंक ने तय प्रक्रिया के तहत 26 मार्च 2023 को दिवंगत बुजुर्ग की संपत्ति को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) घोषित किया। उसके बाद नोटिस के संबंध में बीती 20 जनवरी को समाचारपत्रों में सार्वजनिक सूचना प्रकाशित की।
उसके बाद अदालत में सरफेसी एक्ट के तहत संपत्ति पर कब्जा लेने की अर्जी दाखिल कर दी। अदालत के सामने बुजुर्ग के बेटा और बेटी ने बकाया राशि के भुगतान के लिए और समय मांगा। इस पर अदालत ने माना कि उत्तराधिकारियों को भुगतान के लिए पर्याप्त समय दिया गया।
देहरादून एसडीएम को आदेश दिया गया है कि वे 30 दिनों के भीतर बैंक को संपत्ति का कब्जा दिलवाएं। बुजुर्ग के बच्चों को 15 सितंबर तक उस संपत्ति से अपना सारा सामान हटाने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि बैंक कब्जा लेने के लिए कैंट पुलिस स्टेशन से सहायता भी ले सकता है।
देहरादून बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मनमोहन कंडवाल के अनुसार, रिवर्स मॉर्टगेज लोन 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों को अपनी संपत्ति को बेचे बिना नियमित आय या एकमुश्त राशि प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। बहुत से मामलों में देखा जाता है कि एक व्यक्ति अपने जीवनभर की आय से घर या संपत्ति जोड़ता है लेकिन वृद्धावस्था में उनके वारिस उन्हें देखभाल खर्च नहीं देते। दूसरी ओर संपत्ति पर कब्जा भी रखते हैं।ऐसे मामलों में बुजुर्ग अपनी संपत्ति को बैंक के समक्ष गिरवी रखकर जीवन-यापन के लिए यह लोन ले सकते हैं। इस लोन का भुगतान उनके निधन के बाद संपत्ति पर काबिज उत्तराधिकारियों को करना होता है। लोन नहीं चुकाने पर बैंक उस संपत्ति को बेचकर अपनी राशि रिकवर करता है। बची हुई रकम उत्तराधिकारियों को मिलती है।
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