उत्तरकाशी: धराली गांव के ग्रामीणों को आपदा के साथ ही दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. दवाइयां न मिलने के कारण उनके सेब के पेड़ों पर पतझड़ समेत दाग लगने की बीमारी शुरू हो गई है. जिससे लोगों के माथे पर और ज्यादा सिकन पड़ गई है. उन्हें उम्मीद थी कि आपदा में सब कुछ तो खो चुके हैं. ऐसे में सेब की फसल से उम्मीद बंधी थी, लेकिन अब सेब पर बीमारियां लगने के कारण यह उम्मीद भी धूमिल हो रही है.
बता दें कि धराली के ग्रामीणों का चारधाम यात्रा में होटल, दुकानों के साथ ही सेब मुख्य आजीविका का मुख्य साधन था. इसमें होटल और दुकानें तो मलबे में जमींदोज हो गई हैं तो अब ग्रामीणों को उम्मीद थी कि सितंबर मध्य में निकलने वाले सेब से वो अपनी आर्थिकी को दोबारा पटरी पर ला पाएंगे, लेकिन सड़कें बंद होने और आपदा के कारण ग्रामीणों को सेब पर छिड़काव के लिए दवाइयां नहीं मिल पा रही है.
इन दिनों सेब पर ग्रामीण दवाइयों का छिड़काव करते थे, जिससे पेड़ों पर पतझड़ न हो. इसके साथ ही सेब के फलों पर दाग न लगे, लेकिन आपदा के कारण उन्हें दवाइयां नहीं मिल पा रही हैं.” -ममता पंवार, सेब उत्पादक, धराली
ममता पंवार ने बताया कि दूसरी ओर ‘लोग आपदा से ही नहीं उभर पाए हैं. इसलिए वो अपने सेब के बगीचों की ओर भी ध्यान नहीं दे पा रहे हैं.’ उन्होंने कहा कि ‘धराली गांव में प्रत्येक परिवार सेब से अपनी आजीविका चलाता है, लेकिन उसमें कई लोग ऐसे हैं, जिनके आपदा में पूरे बगीचे बह गए हैं. जिन लोगों के बगीचे बचे हुए हैं, उन पर पतझड़ और दाग लगने के कारण नुकसान हो रहा है.’
धराली क्षेत्र में लगभग 25 मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता था, जो कि आपदा के बाद बर्बाद हो गया है. जो सेब बचे भी हैं, वो बीमारी के चलते 80 फीसदी से ऊपर खत्म हो गया. इस संबंध में उद्यान विभाग से वार्ता हुई है. जिस पर उद्यान विभाग ने काश्तकारों को आश्वासन दिया है कि बीमारी के लिए जल्द ही वो कुछ उपाय करेगें.” – संजय पंवार, सेब काश्तकार
बता दें कि बीती 5 अगस्त को उत्तरकाशी के धराली में खीर गाड़ में भयानक सैलाब आ गया था. जिससे धराली बाजार में मौजूद मकान, होटल, होमस्टे, सेब के बगीचे तबाह हो गए. इस आपदा के बाद 66 लोग लापता चल रहे हैं. जबकि, अब तक दो डेड बॉडी मिल चुकी है. अभी भी बड़े स्तर पर रेस्क्यू अभियान जारी है. ताकि, कई फीट मलबे के नीचे दबे लापता लोगों को खोजा जा सके.
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