हाईकोर्ट है या मजाक ?

देश में अब “ओआरएस” सिर्फ बीमारों की दवा नहीं, बल्कि ताज़गी का नया स्वाद भी बन चुका है!
दिल्ली हाई कोर्ट ने उन कंपनियों को राहत दे दी है जो अपने ड्रिंक में “ORS” नाम का इस्तेमाल कर रही थीं।
मतलब — अब प्यास बुझाओ और नाम से दवा समझो!

आपको बता दें कुछ दिन पहले FSSAI (फूड सेफ्टी अथॉरिटी) ने सख्ती दिखाई थी — कहा कि कोई भी पेय कंपनी ‘ORS’ नाम नहीं लगाएगी, क्योंकि ये असली मेडिकल सॉल्यूशन नहीं है।
लेकिन कोर्ट ने कहा, “ठहरो! कम्पनियों का 180 करोड़ का नुकसान हो जाएगा अभी बिकने दो भले ही लोगों की जान को खतरा क्यों न हो जाए फिर कंपनियों ने राहत की सांस ली और बोतलें फिर से दुकानों की शोभा बनने लगीं।

एक तरफ डॉक्टर असली ORS पीने की सलाह देते हैं, दूसरी ओर कंपनियां कहती हैं “टेस्ट में बेस्ट, नाम वही!”

👉 “अब प्यास भी ब्रांडेड होगी और दवा भी स्वादिष्ट,

क्या उपभोक्ता समझ पाएंगे कि कौन-सा “ओआरएस” शरीर संभालता है और कौन-सा सिर्फ स्वाद बढ़ाता है?

क्या कोर्ट का यह फैसला व्यापार की मिठास और जनता की समझ दोनों का संतुलन बिगाड़ देगा?

या फिर अब “ब्रांडिंग” ही तय करेगी कि दवा कौन सी है और ड्रिंक कौन?
जब नाम में दम हो, तो असर का क्या काम!”
ओआरएस अब एक पेय है या पहचान का खेल — फैसला जनता की जुबान पर है, कोर्ट के कागज़ पर नहीं।

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