कॉर्बेट जैसा देश का सबसे महत्वपूर्ण टाइगर रिज़र्व लगातार शिकार, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अनियमितताओं के दबाव में रहा है। ऐसे में संरक्षण व्यवस्था पर सबसे बड़ा सवाल उस समय उठ खड़ा हुआ जब 2015 के बाघ शिकार कांड में आरोपों के दायरे में आए वरिष्ठ अधिकारी समीर सिन्हा को जून 2025 में उत्तराखंड का हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स (HoFF) नियुक्त कर दिया गया।
वन संरक्षण तंत्र में इसे एक “खतरनाक संकेत” और “जांच को प्रभावित करने की संभावनाओं वाला निर्णय” माना जा रहा है।
अक्सर सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ता है
पिछले वर्ष भी इसी तरह की संवेदनशील नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा था, जब राहुल को राजाजी टाइगर रिज़र्व का निदेशक बना दिया गया था। कॉर्बेट के निदेशक के रूप में उनका पूर्व कार्यकाल CBI जांच के दायरे में शामिल था, इसलिए अदालत ने इस posting को रोक दिया था।
2015 का कांड: हाईकोर्ट ने दी CBI जांच की मंजूरी
कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में 2015 में हुए बाघ शिकार और अंतरराष्ट्रीय तस्करी नेटवर्क के खुलासे से देशभर में हड़कंप मच गया था। NTCA और WII की रिपोर्टों ने वन अधिकारियों की संभावित मिलीभगत और गंभीर लापरवाही की ओर संकेत किया।
इन्हीं आधारों पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 2018 में CBI जांच के आदेश दिए थे।
लेकिन आदेश जारी होते ही तत्कालीन चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन डी.एस. खाती सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और एक तकनीकी त्रुटि का हवाला देकर जांच पर स्टे लगवा दिया।
तब से आज तक—सात साल—CBI जांच ठप पड़ी हुई है।
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि बाघ शिकार की घटनाओं के समय डी.एस. खाती ही मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक थे।
*CBI ने सुप्रीम कोर्ट में स्वीकारे गंभीर आरोप*
अक्टूबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने काउंटर एफिडेविट में CBI ने कई गंभीर बिंदु दर्ज किए—
• शुरुआती जांच वन अधिकारियों और शिकारियों की सीधी मिलीभगत की ओर संकेत करती है।
• बाघों की मौत के मामलों में NTCA दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया गया।
• कुछ अधिकारियों द्वारा सबूतों से छेड़छाड़ (tampering of evidence) की आशंका की पुष्टि के लिए आगे जांच अनिवार्य है।
इसके अलावा जुलाई 2023 में CBI ने एक बार फिर स्टे हटाने की मांग की। एजेंसी ने चेताया कि जांच में देरी के कारण शिकारी और उनके सहयोगी सबूत नष्ट कर सकते हैं, जिससे पूरा मामला कमजोर पड़ जाएगा।
हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट में इस पर अभी सुनवाई नहीं हो सकी है।
*सिर्फ 26 दिन चली CBI जांच—फिर रोक*
CBI ने हाईकोर्ट के आदेश मिलने के बाद 26 सितंबर से 22 अक्टूबर 2018 तक जांच की शुरुआत की थी।
लेकिन खाती की याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जांच पर रोक लगा दी। उसके बाद से न आगे पूछताछ, न सबूतों की पुष्टि—पूरी प्रक्रिया अटकी हुई है।
*संरक्षण व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिह्न*
कॉर्बेट जैसे राष्ट्रीय महत्व के रिज़र्व में बाघों के शिकार, कथित मिलीभगत और शीर्ष अधिकारियों की विवादित नियुक्तियों ने भारत की वन्यजीव संरक्षण प्रणाली की विश्वसनीयता को गहराई से झकझोरा है।
यदि CBI को जांच दोबारा शुरू करने की अनुमति नहीं मिलती, तो यह मामला न केवल बाघ संरक्षण की नीतियों पर, बल्कि संस्थागत नैतिकता और पारदर्शिता पर भी गंभीर प्रभाव डाल सकता है।














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